आज के दौर में
हर शख्स परेशां है,आज के दौर में,
भीड़ में भी तन्हा है ,आज के दौर में,
हुनर रंग बदलने का सीख गया इंसा
गिरगिट भी हैरां है,आज के दौर में।
इश्क़,मोहब्बत हो गए हैं लापता,
हीर रांझा नही मिलते हैं ,आज के दौर में।
उँगली थाम कर जिनकी ,बचपन चला
वो बोझ से हो गए हैं आज के दौर में।
भीड़ में भी तन्हा है ,आज के दौर में,
हुनर रंग बदलने का सीख गया इंसा
गिरगिट भी हैरां है,आज के दौर में।
इश्क़,मोहब्बत हो गए हैं लापता,
हीर रांझा नही मिलते हैं ,आज के दौर में।
उँगली थाम कर जिनकी ,बचपन चला
वो बोझ से हो गए हैं आज के दौर में।