बरसी का दिन
वर्ष कयी बीत गये
समय कितना बीत गया
गिरते संभलते निकल गये
दुनिया में हम जीना सीख गये
पलकों के आंसूं सूख गये
पर जब भी आता है दिन बरसी का
यादों की बाढ आ जाती है
मां यादों की बाढ आ जाती है
घर का कमरा भी समुद्र लगता है
शायद आप बाहर हो,ऐसा लगने लगता है
सूखी आंखों में कतरा दिखने लगता है।।
समय कितना बीत गया
गिरते संभलते निकल गये
दुनिया में हम जीना सीख गये
पलकों के आंसूं सूख गये
पर जब भी आता है दिन बरसी का
यादों की बाढ आ जाती है
मां यादों की बाढ आ जाती है
घर का कमरा भी समुद्र लगता है
शायद आप बाहर हो,ऐसा लगने लगता है
सूखी आंखों में कतरा दिखने लगता है।।