ग़ज़ल
ख़्वाब इक उनके ही आँखों में बसा करते हैं!
रत-जगे हों भी तो बस वो ही दिखा करते हैं!
ये शब-ओ-रोज़ नहीं यूँ ही चराग़ाँ है सनम,
शम्अ बन कर तिरी यादों में जला करते हैं!
रूठा रूठा सा है अब चाँद फ़लक का हमसे,
क्यूँ कि...
रत-जगे हों भी तो बस वो ही दिखा करते हैं!
ये शब-ओ-रोज़ नहीं यूँ ही चराग़ाँ है सनम,
शम्अ बन कर तिरी यादों में जला करते हैं!
रूठा रूठा सा है अब चाँद फ़लक का हमसे,
क्यूँ कि...