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हर_इक_शाम_मेहनतकशों_के_नाम
यहां तो हर शाम मेहनतकशों के नाम होता है
फिर क्यों पसीने से सींचा काम आम होता है
ये मेहनतकश ही ज़िम्मेदारियों की बुनियादें
तब जाकर परिश्रम का नया मक़ाम होता है
बड़े - बड़े कामों को हंसकर स्वागत करते है
बनते बिगड़ते श्रम का नया अंजाम होता है
श्रम मे मजबूरियों के कई किरदारों में दिखते
यूं ही नहीं ये वक़्त श्रमिकों का ग़ुलाम होता है
भले ही श्रम का जन्म परिस्थितियों के अनुरूप है
पर श्रमिकों के हाथों में ही भविष्य का काम होता है
अपने हाथों से अपनी निशानी यहां वहां छोड़ा करते
तब जाकर कहीं इन श्रमिकों को थोड़ा आराम होता है
मजदूरों की ज़िंदगी के पन्नें इम्तिहानों से यूं भर गए
लेकिन मजदूरों के ज़ख़्मों का नाम गुमनाम होता है
हालातों का ज़िक्र ख़ामोशी से समेटकर चलतें रहतें
हर इक दिन मेहनतकशों का कुछ नया पैग़ाम होता है
यहां कहीं ईंट - पत्थर तो कही क़लम - कागज़ होते
तब जाकर कहीं हर इक काम का सही दाम होता है
ज़िंदगी का असली फ़ल्सफ़ा तो ये मेहनतकश लोग है
फिर भी नहीं ख़ून पसीने के नाम कोई सलाम होता है
© Ritu Yadav
फिर क्यों पसीने से सींचा काम आम होता है
ये मेहनतकश ही ज़िम्मेदारियों की बुनियादें
तब जाकर परिश्रम का नया मक़ाम होता है
बड़े - बड़े कामों को हंसकर स्वागत करते है
बनते बिगड़ते श्रम का नया अंजाम होता है
श्रम मे मजबूरियों के कई किरदारों में दिखते
यूं ही नहीं ये वक़्त श्रमिकों का ग़ुलाम होता है
भले ही श्रम का जन्म परिस्थितियों के अनुरूप है
पर श्रमिकों के हाथों में ही भविष्य का काम होता है
अपने हाथों से अपनी निशानी यहां वहां छोड़ा करते
तब जाकर कहीं इन श्रमिकों को थोड़ा आराम होता है
मजदूरों की ज़िंदगी के पन्नें इम्तिहानों से यूं भर गए
लेकिन मजदूरों के ज़ख़्मों का नाम गुमनाम होता है
हालातों का ज़िक्र ख़ामोशी से समेटकर चलतें रहतें
हर इक दिन मेहनतकशों का कुछ नया पैग़ाम होता है
यहां कहीं ईंट - पत्थर तो कही क़लम - कागज़ होते
तब जाकर कहीं हर इक काम का सही दाम होता है
ज़िंदगी का असली फ़ल्सफ़ा तो ये मेहनतकश लोग है
फिर भी नहीं ख़ून पसीने के नाम कोई सलाम होता है
© Ritu Yadav
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