...

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आम आदमी
सूर्य की किरणों के साथ
हर सुबह जगता है
आम आदमी
लेकर अपनी ज़िम्मेदारियों का बोझ
बस यूं घर से निकल पड़ता है
वो आम आदमी
धूप की तपन हो या बूंदों की चुभन
न जानें चुप चाप कैसे सह जाता है
वो खामोश आम आदमी
क्या फर्क पड़ता है अगर कमीज़ फटी हो
किसी रात अगर पेट पीठ में सटी हो
फिर भी सो कर जग जाता है
वो बेबस सा आम आदमी
ओढ़ कर वो अदब की चादर
अक्सर करता है सबका आदर
पर क्या अधिकार क्या सरकार
कुछ नहीं जानता है वो आम आदमी
क्या कभी सोचा है किसी ने
कि कैसे अपने संघर्षों से पार पाएगा
या लड़ते लड़ते खुद से हार जाएगा
वो बेबस और खामोश आम आदमी






© Rhycha