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आज की नारी सब पर भारी 😊
मैचिंग ब्लाउज मैचिंग साड़ी
हाई हील के सैंडल पहन के
बाजू में लटकाया पर्स
गले में पहन के दिखावटी हार निकली है आज की नारी
देखो भाई कैसी है इसकी साड़ी जो सब पर है भारी
बालों में क्लिप लगाए
मुंह बनाकर लिपस्टिक लगाए
नये जमाने की फैशन दिखाए
सास देख इसे चिड़ जाए
वह भी हुआ करती थी कभी बहुत ही खूबसूरत
उम्रों ने उड़ा दी रंग की सूरत
पुराने दिन जब उसे याद आए
कुएं पर वह नार जब पानी भरने जाए
मटका भरकर जब वह घर को लाती
बुढों की भी जवानी जिंदा होकर गदर मचाती
उसका यौवन था मनभावन
जिसे देख दौरानी-जिठानी भी दांतों तले उंगली चबाती
आज वह ताजगी कहां हैं
पर एक नजर देखे तो आज भी बुढ्ढै मर जाए
जी न सखी वह ऐसे जिससे वह कितनी सुंदर होती
क्या था जब थी एक मट-मैली सी धोती
आज जमाना क्या से क्या हुआ
घांगरे पर भी भांगड़ा हुआ
उसके अंदर भी एक कसक रही
नए दौर की बहू भी जिससे उसे खटक रही
कोई मल्हार सुनता है नांव में
सास-बहू के झुंड में
चुगली होती है गांव के कुंड में
जब बैठें साथ-साथ चिचिड़़बाजी होती है जैसे नाटक की कोई नयी नायिका नये ख्वाब संजोती है आज बन गई है जो मां नाटक में वह बुढ़िया अपने दिनों में खोती है
नाटक का यह दौर और है
कल कुछ था आज और है
चलो बहुत हुआ खत्म करते हैं यह कहना
बहु को बना लेती हूं अब मैं बहना
जब तक नाटक है किरदार निभाते हैं
चलो नए दौर में घुल-मिल जाते हैं
मैचिंग ब्लाउज मैचिंग साड़ी
मैं पड़ुगी सब पर भारी
मैं हूं भारत की आधुनिक नारी
हाई हील के सैंडल पहन के
बाजू में लटकाया पर्स
गले में पहन के दिखावटी हार निकली है आज की नारी
देखो भाई कैसी है इसकी साड़ी जो सब पर है भारी
बालों में क्लिप लगाए
मुंह बनाकर लिपस्टिक लगाए
नये जमाने की फैशन दिखाए
सास देख इसे चिड़ जाए
वह भी हुआ करती थी कभी बहुत ही खूबसूरत
उम्रों ने उड़ा दी रंग की सूरत
पुराने दिन जब उसे याद आए
कुएं पर वह नार जब पानी भरने जाए
मटका भरकर जब वह घर को लाती
बुढों की भी जवानी जिंदा होकर गदर मचाती
उसका यौवन था मनभावन
जिसे देख दौरानी-जिठानी भी दांतों तले उंगली चबाती
आज वह ताजगी कहां हैं
पर एक नजर देखे तो आज भी बुढ्ढै मर जाए
जी न सखी वह ऐसे जिससे वह कितनी सुंदर होती
क्या था जब थी एक मट-मैली सी धोती
आज जमाना क्या से क्या हुआ
घांगरे पर भी भांगड़ा हुआ
उसके अंदर भी एक कसक रही
नए दौर की बहू भी जिससे उसे खटक रही
कोई मल्हार सुनता है नांव में
सास-बहू के झुंड में
चुगली होती है गांव के कुंड में
जब बैठें साथ-साथ चिचिड़़बाजी होती है जैसे नाटक की कोई नयी नायिका नये ख्वाब संजोती है आज बन गई है जो मां नाटक में वह बुढ़िया अपने दिनों में खोती है
नाटक का यह दौर और है
कल कुछ था आज और है
चलो बहुत हुआ खत्म करते हैं यह कहना
बहु को बना लेती हूं अब मैं बहना
जब तक नाटक है किरदार निभाते हैं
चलो नए दौर में घुल-मिल जाते हैं
मैचिंग ब्लाउज मैचिंग साड़ी
मैं पड़ुगी सब पर भारी
मैं हूं भारत की आधुनिक नारी
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