टेक्नोलॉजी
सोशल मीडिया का दावग्नि चेष्ट, कर रहा युवाजन को अपडेट,
परम्पराये बनी हास्य पात्र,युवाजन समझे स्वयं को तात,
विस्मरण है अपने सारे कुल,अपरिचित भावीपीढ़ी ना समझे गुरु का मूल,
कहते इसको नीलकंठी त्रिशूल,बना रहे स्वयं को पदों की धूल।
आ गयी वो अंतिम घड़ी, पूत तोड़े शताब्दी की बेड़ी,
अद्वितीय रूप अजय शरीर, करता भावीपीढ़ी के मन को अधीर,
मूर्ख समझे इसे...
परम्पराये बनी हास्य पात्र,युवाजन समझे स्वयं को तात,
विस्मरण है अपने सारे कुल,अपरिचित भावीपीढ़ी ना समझे गुरु का मूल,
कहते इसको नीलकंठी त्रिशूल,बना रहे स्वयं को पदों की धूल।
आ गयी वो अंतिम घड़ी, पूत तोड़े शताब्दी की बेड़ी,
अद्वितीय रूप अजय शरीर, करता भावीपीढ़ी के मन को अधीर,
मूर्ख समझे इसे...