नाचते क्यों लोग शव के सामने
नाचते क्यों लोग शव के सामने,
कभी सोचा है क्या आपने?
मैंने भी न सोचा था कल तक,
पर न जाने क्या हुआ कल मुझे शव को देखे।
भरी हुई गाड़ी में बैठी थी , फिर भी अकेली थी।
विचारों में खौई, ज्ञान मगन थी ।
आस पास क्या हो रहा था कौन जाने ?
मैं तो खौई थी अपनी ही दुनिया में ।
जीवन के बारे में सोचते हुए निशॿद बैठी हुई थी ।
जब अचानक ढोल बजने की आवाज़ सुनाई दी,
रोज़ न भजाते थे , कल क्यों बजा रहे थे?
तो खिड़की से मैंने बाहर देखा,
और देखा शव के सामने लोग नाच रहे थे,
शव के सामने लोग नाच रहे थे,क्या कोई दुख न था उनको ।
मृत्यु हुई थी ,
क्या मृत्यु कोई कुशल विषय थी ?
एक औरत के शव के सामने लोग नाच रहे थे।
क्यों नाच रहे थे?
उनको देखते हुए मैं विचारों में डूब गई,
न जाने कब शव निकल गया,पर मुझे क्या?
मैं तो उतर की तलाश में थी ।
जीवन का अंत मृत्यु है
अौर मृत्यु ले जाती है हमें अपनो से दूर ।
न जाने क्यों लोग नाचते है जब मुझे होता है दुख ।
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