...

2 views

क्योंकि
आज भी पानी की लहरें किनारे को छू जाती हैं,
क्योंकि रेत को कभी तो पानी में बहना ही था ,
इस ओर गंगा में या उस ओर यमुना में,
चाहकर या अनचाहे,
रेत को आज भी लहरों में बह जाना ही था।

आज भी सूरज समंदर के उस पार से निकल आया,
क्योंकि अंधेरे का अंत तो आना ही था,
आज या कल रात को जाना ही था अंत में,
चाहकर या अनचाहे,
सूरज को आज भी खुदको जलाना ही था।

आज भी हवाएँ पीछे से आकर आगे चले जाती हैं,
क्योंकि उस पत्ते को कभी तो जुदा होना ही था,
तेज़ आँधी के बीच या शांत पवन में,
चाहकर या अनचाहे,
पत्ते को आज भी हवाओ में उड़ जाना ही था।

आज भी एक पंछी सब कुछ छोड़कर उड़ जाता है,
क्योंकि उसे कुछ साथ लेकर जाना न था,
इसी धरती पर, इसी आँगन में,
चाहकर या अनचाहे,
पंछी को सिर्फ अपने कर्मों के साथ चले जाना था।
© Lavenderdawn