एक आवाज़
कईं लहरों का कारवां यूं बनता चला गया ।
जैसे तबियत से पत्थर फैंका हो समंदर में ।।
पहले बस गुमनामियाँ ही गुमनामियां थीं ।
अब नज़ारे ही नज़ारे हैं इस मंज़र में ।।
कईं पर्वत हिला देती है यह ।
जो एक आवाज़ उठी अंदर से ।।
एक आवाज़ हुई दो , दो हुईं चार ।
इतिहास बदल देते हैं , आवाज़ों के बवंडर ये ।।
जगमगा उठे यह दर _ ओ _ दीवार ।
कल तक जो महज़ खंडर थे ।।
जैसे तबियत से पत्थर फैंका हो समंदर में ।।।
जैसे तबियत से पत्थर फैंका हो समंदर में ।।
पहले बस गुमनामियाँ ही गुमनामियां थीं ।
अब नज़ारे ही नज़ारे हैं इस मंज़र में ।।
कईं पर्वत हिला देती है यह ।
जो एक आवाज़ उठी अंदर से ।।
एक आवाज़ हुई दो , दो हुईं चार ।
इतिहास बदल देते हैं , आवाज़ों के बवंडर ये ।।
जगमगा उठे यह दर _ ओ _ दीवार ।
कल तक जो महज़ खंडर थे ।।
जैसे तबियत से पत्थर फैंका हो समंदर में ।।।