आखिर क्यू...
आखिर क्यू?
ये दुनियाँ इतनी बदल गयी है,
यहां के इंसान इतने मतलबी हो गये,
क्यू कोई नहीं समझता
इक-दूसरे के जज्बात,
करता अपनों पर ही वार
आखिर क्यू?
आज है हर किसी को
खुद पर इतना अभिमान...
मान बैठा है खुद को भगवान,
क्यू है हर घर मे महाभारत का सड़यंत्र
भाई -भाई को ना भाता है,
ये कैसा बन रहा अजीब सा नाता है.
.
आखिर क्यू?
जिनकी ऊँगली पकड़ चलना सीखा
आज उनका हाथ छोड़ उनको घर से बाहर...
ये दुनियाँ इतनी बदल गयी है,
यहां के इंसान इतने मतलबी हो गये,
क्यू कोई नहीं समझता
इक-दूसरे के जज्बात,
करता अपनों पर ही वार
आखिर क्यू?
आज है हर किसी को
खुद पर इतना अभिमान...
मान बैठा है खुद को भगवान,
क्यू है हर घर मे महाभारत का सड़यंत्र
भाई -भाई को ना भाता है,
ये कैसा बन रहा अजीब सा नाता है.
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आखिर क्यू?
जिनकी ऊँगली पकड़ चलना सीखा
आज उनका हाथ छोड़ उनको घर से बाहर...