...

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आखिर क्यू...
आखिर क्यू?
ये दुनियाँ इतनी बदल गयी है,
यहां के इंसान इतने मतलबी हो गये,
क्यू कोई नहीं समझता
इक-दूसरे के जज्बात,
करता अपनों पर ही वार

आखिर क्यू?
आज है हर किसी को
खुद पर इतना अभिमान...
मान बैठा है खुद को भगवान,
क्यू है हर घर मे महाभारत का सड़यंत्र
भाई -भाई को ना भाता है,
ये कैसा बन रहा अजीब सा नाता है.
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आखिर क्यू?
जिनकी ऊँगली पकड़ चलना सीखा
आज उनका हाथ छोड़ उनको घर से बाहर निकाला जाता है....
क्यू उनको वृद्धा आश्रम भेजा जाता है,
इतनी भृष्ट बुद्धि लोगों की कैसे हो रही है.....
जीवन की शैली ही बदल रही है...

आखिर क्यू?
दरिंदगी, हैवानियत इतनी बढ़ रही है,
इंसानो की भूख उनकी ज़िन्दगी बदल रही है...
पग-पग पर बेआबरू हर स्त्री हो रही है
कहीं दहेज़ की खातिर तो
कहीं प्रताड़ित हिंसा से रो रही...

आखिर क्यू?
ए इंसान संभाल खुद को
वक्त रहते थाम ले अपने मन को,
क्यू करता है इतना लालच
जो बचा है संजो के रख ले,
सबके दिल मे प्यार को भर दे
ज़िन्दगी के मायने समझ
थोड़ी इज़्ज़त खुद की और
थोड़ी दुसरो की कर ले....
क्यू बैर करके बैठा है...
क्यू अहंकार मे जीता है....
आखिर क्यू?