मैं अब दरख़्त होने लगा हूँ…
मैं दरख़्त होने लगा हूँ …
जब से मैंने सीखा है
किसी फलों से लदे
दरख़्त की तरह झुकना
तब से लोग
आने लगे हैं मेरे जानिब
परिंदों की तरह
मैं अब फैला लेता हूँ
अपनी बाँहें
और
भर लेता हूँ उन्हें
अपने आग़ोश में किसी दोस्त की...
जब से मैंने सीखा है
किसी फलों से लदे
दरख़्त की तरह झुकना
तब से लोग
आने लगे हैं मेरे जानिब
परिंदों की तरह
मैं अब फैला लेता हूँ
अपनी बाँहें
और
भर लेता हूँ उन्हें
अपने आग़ोश में किसी दोस्त की...