रोज की कहानी
रोज उठकर सोचता हूं
शायद आज कुछ बेहतर होगा,
फिर शाम आते-आते कल पर टाल
देता हूं,
लगता है जिंदगी यूं ही निकल जाऐगी,
पर ये मुकाम ना हासिल होगा
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शायद आज कुछ बेहतर होगा,
फिर शाम आते-आते कल पर टाल
देता हूं,
लगता है जिंदगी यूं ही निकल जाऐगी,
पर ये मुकाम ना हासिल होगा
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