...

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उत्तम प्रेम.....
चाहे किसी भी काम मे तुम निपुण न बनो
पर मानो कहा मेरा
प्रेम करना तो पुरुषोत्तम की तरह
ह्रदय मे रखना ह्रृदेश्वरी को
जो हाथ उठे उसके दामन की तरफ
काट कर फेंकने का पुरूषत्व हो तुममे
ये न कर सको तो प्रेम न करना
श्रीराम ने सर के पहले
काट के गिरा दिया था रावण के बांहो को
जहाँ स्त्रित्व की रक्षा की बात आए
तब गमगिन नही गंभीर बनना
और हाँ काक जयंता भी कभी न बनना
वरना तीनों लोक मे शरण न पाओगे
सर्वदा इतिहास मे बुरे कहलाओगे
अपने पूर्वजो के इतिहास को
उडा न देना परिहास मे
जींदगी के...