...

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आतंकवाद
शर्तों की शुली पर टंगा देश का भाग्य है,
हिंसा के झूले पर दुर्भाग्य झूल रहा है,
जगह जगह आतंकवाद अपने डेरे डाले हैं,
कौन बचाएगा देश को जब रक्षक लूटेरे हैं।

सोने की चिड़िया को लगा दिया है दांव पर,
अपना देश अब खड़ा है विदेशी के पांव पर,
राजनीति के चपेट मे कमजोर फंस जाते...