*** मसरुफ़ियत ***
*** कविता ***
*** मसरुफ़ियत ***
" चलो एक बात समझी जाये ,
एक - दुजे का साथ बेहतर समझा जाये ,
खोये तुम भी कुछ गुमसुम मैं भी हूं ,
चलो इस मसरुफियत में हम हमनवां हो जाये ,
कोई ख़्वाबो का मंज़र एहसास लेकर बैठे हैं ,
चलो कहीं ये गिले - सिकवे वसूल किये जाये ,
मिल जरा कि...
*** मसरुफ़ियत ***
" चलो एक बात समझी जाये ,
एक - दुजे का साथ बेहतर समझा जाये ,
खोये तुम भी कुछ गुमसुम मैं भी हूं ,
चलो इस मसरुफियत में हम हमनवां हो जाये ,
कोई ख़्वाबो का मंज़र एहसास लेकर बैठे हैं ,
चलो कहीं ये गिले - सिकवे वसूल किये जाये ,
मिल जरा कि...