...

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सुन जरा...
कहती है क्या ये गुल बहार ये खुशबू, एहसासों में इनके नजाकत बसी है।
और कहना चाहता है ये मदमस्त दिल तुमसे, धक धक धड़कनों तुम्हारी चाहत छुपी है,
कि थोड़ा संभल कर करना इश्क, कहीं मेरे होकर न रह जाओ,
और गिरोगे कैसे नही तुम हमारे प्यार में,
हमारे तो नजरों का निशाना सही है,
कहती है क्या ये गुल बहार ये खुशबू, एहसासों में इनके नजाकत बसी है।
डूब जातें हैं वो भी मोहोब्बत में,
जो तैरना बखूबी जानते हैं,
जो इश्क को समझते हैं पागलपन, एक बार वो भी मोहोब्बत आजमाते हैं,
पाप नही ये खुदा की रहमत है प्यार पर,
तरीके बदल गए मगर वो बात आज भी वही है,
कहती है क्या ये गुल बहार ये खुशबू, एहसासों में इनके नजाकत बसी है।



© nainshi anand