...

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नारी
कहने को तो ये सिर्फ दो वर्णों का है
पर इससे ही मनुष्य का अस्तित्व टिका है...
नारी शक्ति को लोग यहाँ बढ़ावा देते हैं
और फिर उन्ही को आगे बढ़ने से रोकते हैं...
ऐसे तो नारी को माता का स्थान दिया जाता है
पर असल में तो सिर्फ उसका अपमान किया जाता है...
वो अपनी पूरी ज़िंदगी
एक घर को संभालने में
गुज़ार देती है....
इतना दुःख सहती है
पर किसी से एक लफ्ज़ ना कहती है...
जमाने की बुरी नज़रों से खुद को बचाती है...
और अगर कुछ गलत हो जाये
तो ये दुनिया उसी पर इल्ज़ाम लगाती है...
दूसरों की खुशियों में वो इतनी मग्न हो जाती है
कि उसे किस चीज़ से खुशी मिलती है
ये भी भूल जाती है...
इतना कुछ करने के बाद भी
अगर उससे कोई चूक हो जाता है
तो सारी बातें भूलकर हर कोई उसे ही दोषी ठहराता है...
जिस बालक को वो नौ महीने
अपने गर्भ में पालती है
वही बालक बड़ा होकर
उसे अपने ही घर से निकालती है...
ना जाने कब मिलेगा उसके हक़ का
सम्मान उसे,
जब आदमी सच में समझेगा अपना अभिमान उसे ।।
© 🖤blank voice🖤