...

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तू सोच !
क्या तू अपने ही नज़रों में काबिल नहीं है?
क्यों हताशा से भरा तेरा मन है
दुनिया के सामने मत बनके रह तू अनजान
साद निशाना अपने लक्ष्य की ओर और छोड़ दे कमान

मत सोच क्या कहेंगे वह
सोच तू खुद से क्या कह रहा है
कहीं दूसरों की बातों में तेरा दम तो नहीं घुट रहा है
क्यों जकड़ा है तूने अपने आप को जंजीरों में?
क्यों हटा रहा है तू अपने हाथ अपने ऊपर से?

भूल गया तूने खुद से क्या वादा किया था
मुश्किलों से घबराकर तू खुद क्यों टूट गया
अब उठ,तुझे उठना ही होगा
दूर जाना है तुझे,तुझे अब थकना नहीं होगा
अंधेरे में जुगनू बनके तुझे टिमटिमाना ही होगा
अपने अंदर की आलोकिकता को जगाना ही होगा..
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