...

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मेरी दोस्ती
मैने कभी कुछ छुपाया नहीं तुमसे, मैं तो हर बात तुम्हें बताती थी
खुद को सुदामा और तुम्हें भगवान श्रीकृष्ण जैसे समझती थी,,,

खुली किताब थी मैं और शायद आज भी वैसी हूं मैं,,
करना चाहती हूं कभी दिखावा अगर,,
तो कर ना पाऊं कभी भी मैं,

केवल अपनेपन की अभिलाषी थी मैं,,
शायद मनोबल अपना सम्भाल पाती मैं,,
फिर भी तुम्हें कोई दोष नहीं,,,
कमज़ोर हुयी थी आखिर मैं,,

बस इसी चाह में ही तुझसे संवाद को आतुर थी,
पर, मेरे शब्दों का अर्थ ही बदल गया,,, मेरे व्यवहार से तुमको भी ठेस लगी थी।

बहुत स्नेह है न तुम्हे मुझसे,
तभी तो बहुत गुस्सा भी है,
हमारी दोस्ती तो इतना पवित्र है
बिल्कुल सुदामा-कृष्ण जैसा है।

आज भी प्रतीक्षारत हूँ मैं और तब तक रहूंगी जब तक तुम लौट ना आओ
हमारी मित्रता में प्रेम की गहराई और पवित्रता को जब तुम समझ पाओ।
© 💥@nn@pu₹n@💥