ज़िंदगी ख़्वाब में बसर करते ۔۔۔
दर्द से खुद को बे'खबर करते ।
ज़िन्दगी ख़्वाब में बसर करते ।।
तुमको मिलती न फिर कोई मंज़िल ।
इश्क़ में तुम अगर सफ़र करते ।।
ज़िक्र होता , कहीं बिछड़ने का ।
अपने दामन को अश्क़ - तर करते ।।
तर्क रिश्ता लगा मुनासिब सा ।
कितना खुद पे भी हम ज़बर करते ।।
दर्द से खुद को बे'खबर करते ।
ज़िन्दगी ख़्वाब में बसर करते ।।
डाॅ फौज़िया नसीम शाद
© All Rights Reserved
ज़िन्दगी ख़्वाब में बसर करते ।।
तुमको मिलती न फिर कोई मंज़िल ।
इश्क़ में तुम अगर सफ़र करते ।।
ज़िक्र होता , कहीं बिछड़ने का ।
अपने दामन को अश्क़ - तर करते ।।
तर्क रिश्ता लगा मुनासिब सा ।
कितना खुद पे भी हम ज़बर करते ।।
दर्द से खुद को बे'खबर करते ।
ज़िन्दगी ख़्वाब में बसर करते ।।
डाॅ फौज़िया नसीम शाद
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