उलझन
जीवन में इतना खोया है,
कि अब खोने से डर नहीं लगता।
तुम्हें तो पाना भी नहीं था मुझे,
तो अब तुम पर और लुटने का मन नहीं करता।
कोई है जिससे अनजाने में इश्क की इब्तिदा हुई थी,
इंतेहा हुई नहीं है चाहत की सो अब उसे भुला नहीं सकता ।
अजीब कशमकश है ए खुदा,
अब तो तेरे कयामत से भी डर नहीं लगता।
और, खूब सुना है बनारस के अस्मासनो के अफसाने,
कि, वहां जो जल जाए उसे दुबारा आना नहीं पड़ता।
अब करे क्या रहकर यहां,
जमाना जिसे भूलने को कहता है,
उससे भुला भी नहीं सकता
और जिसे पाने को कहता है,
उसे शायद पा भी नहीं सकता ।
@ujjwal
© पराजित
कि अब खोने से डर नहीं लगता।
तुम्हें तो पाना भी नहीं था मुझे,
तो अब तुम पर और लुटने का मन नहीं करता।
कोई है जिससे अनजाने में इश्क की इब्तिदा हुई थी,
इंतेहा हुई नहीं है चाहत की सो अब उसे भुला नहीं सकता ।
अजीब कशमकश है ए खुदा,
अब तो तेरे कयामत से भी डर नहीं लगता।
और, खूब सुना है बनारस के अस्मासनो के अफसाने,
कि, वहां जो जल जाए उसे दुबारा आना नहीं पड़ता।
अब करे क्या रहकर यहां,
जमाना जिसे भूलने को कहता है,
उससे भुला भी नहीं सकता
और जिसे पाने को कहता है,
उसे शायद पा भी नहीं सकता ।
@ujjwal
© पराजित