उलझन
जीवन में इतना खोया है,
कि अब खोने से डर नहीं लगता।
तुम्हें तो पाना भी नहीं था मुझे,
तो अब तुम पर और लुटने का मन नहीं करता।
कोई है जिससे अनजाने में इश्क की इब्तिदा हुई थी,
इंतेहा हुई नहीं है चाहत की सो अब...
कि अब खोने से डर नहीं लगता।
तुम्हें तो पाना भी नहीं था मुझे,
तो अब तुम पर और लुटने का मन नहीं करता।
कोई है जिससे अनजाने में इश्क की इब्तिदा हुई थी,
इंतेहा हुई नहीं है चाहत की सो अब...