...

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वक़्त ही तो नहीं है..
शायद उनके पास यादों की सवारी लिए
खास पलों में दिल की खुमारी के लिए

एक ओर दिन ढलता है खुदको तन्हा रखते
दुजी ओर निगाहें बंद ना होती राह तखते

पर फिर भी परवाह किसे है इस शख्स की
घर में सजा रखे हो जैसे मोतियों के अश्क सी

क्या मायने होते है जब शब्दों को कैद हो
खामोशी आज़ाद होकर जज्बात दफन हो

पर उनका रूह को छूना याद रहेगा उम्र भर
इक पल को लौट कर फिर आना कब्र पर

वो भी ना होता वक़्त बच्चों को शायद
पर जमाने की निभानी है रस्म अदायत

इस तरह मेरा ही अंश मुझसे दूर हुआ है
ये भी तो मेरी तरह वंश के लिए हुआ है

नहीं मांग सके वो भी वक़्त इक बरसात का
आज बहा रहे हैं अश्क बच्चों के फसाद का

निभाना रिश्तों को क्यों फ़र्ज़ नहीं कीमती
वक़्त ही तो नहीं है.. दोस्त, बदकिस्मती
© deeply soulful
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