...

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समापन दीवस
आज एक काल की समाप्ति हुई
ये था हमारे जीवन का अनंत काल
पर ये काल
मौत के गाल मे समा गया
चाहता तो कुछ और हूँ
पर ये वश मे नही है मेरे
इस काल मे सैकडों क्षण ऐसे थे
जिन्हें विस्मृत करना
मेरे लिए असंभव है
पर मेरे विषाद का यही तो कारण है
क्या कुछ ऐसा हो सकता है
जिससे मै इस काल को
अपने जीवन काल से अलग कर दूं ??
या तो मुझे मौत आए... या
मेरी यादाश्त चली जाए
वो वक्त बडा ही सुहाना था
नही जान सका की बेगाना था
इसलिए दर्द है चुभ रहा
दिल ऐसे मेरा हूक रहा
उंगलियाँ कांप रही है थर थर
कलम की भी सांसे कमजोर हुई
जज्बातों की अर्थी निकल गयी
ये काल मुझे झकझोर गयी
तुम रहो खयालों मे हरदम
ये कभी नही मै चाहूंगा
जो यादे दरवाजा खटखटाएगी
चौखट से बाहर हो जाउंगा ।।
रामचंद्र जी का आगमन
कितना फलदायी निकला
जितने दुर्गुण थे आसपास
वे स्वयं ही दूर जा निकले।
सब राग गया विराग गया
दिल का सारा संताप गया
जिस लत ने मुझको घेर रखा था
वो सारा कुकर्म खराब गया।।
उन सब की चीता जलाकर मै
गंगा मे डूबकी लगा लूंगा
तिलांजली देकर अवगुणों को
फिर बहुत दूर चला जाउंगा ।।