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कौवों का आतंक
कौवें कर रहे तंग, भास्कर की समाधी पर।
भोजन करते संतो की थाली पर चोंच मार कर।
हर दिन था उनका आतंक वहां संतो पर।
कभी चोंच मरते संतो को कभी बीट करते उन पर।
बैकुंठ प्राप्त भास्कर का पिंड हिस्सा न पाकर।
भील क्रोधित होकर तीर से निशाना लगाते कौवों पर।
महाराज ने उन्हें रोका,कौवों को मैं देखता हूँ समझा कर।
कहा कौवों को कौवों को हिस्सा मिलेगा तुमको भोजन पर।
आज के बाद यहां न आना,कहीं संत न आये आयोजन पर।
भरपेट भोजन कर लो,आदेश लागू सब कौवों पर।
अगले दिन से बारह वर्षों तक कौवें न आये समाधि पर।
संजीव बल्लाल २२/३/२०२४© BALLAL S