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एक गिरते पत्ते की मनोदशा
स्मरण मुझे है वह वसंत जब प्रकृति के आंगन में मैं पनपा वासंती बयार कितने की दुलारों ने पाला अपने स्वजनों संग कितनों को हमने छांह दिया थके हुए कितनों ने हमारी छांह पा हमारे तल विश्राम किया कितने ही बाल मंडली संग हमने उनके बाल विलास का...