...

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शुरुआत कर दूं जहां से ...
आईने ने आज मुझसे एक सवाल किया,
न सूरज पश्चिम से निकला न
पंछी ने अपना पथ बदला,
एक वक्त गुजरा है एक वक्त फिर मिला।
ये करना है वो करना है,
अपनी बातों से मुझको नहीं मुकरना है,
ऐसा संकल्प हर साल लिया।
कुछ खामियां जिन्हें मिटाने की कोशिश की थी,
आदत में आज भी शामिल थी।
मंजिलों तक जाने के सपने बुनते है लेकिन रास्ते न जाने कौनसे चुनते हैं,
न मिले मंज़िल तो दोष नसीब को दिया।
मैं तो चुप थी फिर मेरे जैसे ही शख्स ने,
आईने से जवाब दिया,
वक्त और शख्स गुजरते रहेंगे,
याद वहीं किए जाएंगे
कुछ कम ही सही
लेकिन जिन्होंने साथ दिया।
आईने ने आज मुझको यह सीखला दिया,
एक वक्त गुजरा है एक वक्त फिर मिला।
क्या पता वक्त का कल मौका मिले न मिले।
तारीखों से नहीं होता कोई साल बयां,
शुरुआत कर दूं जहां से,
वही साल है नया।
इसलिए आज ही कह दूं शुक्रिया!
✍️मनीषा मीना