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गीत
देख अहिंसक को हिंसक बन,मानवता शरमाती है
हे प्रभु इस धरती पर नर को,दानवता क्यों भाती है ।
मानव के कर्मों से प्रचंड,विनाश सर पर आया है
मानव ही मानव का दुश्मन,मति पर घमंड छाया है
दौलत को ही समझ कसौटी,मनुजता डगमगाती है
हे प्रभु इस धरती पर नर को,दानवता क्यों भाती है ।
दंभ के नशे में मानव ने, निज परिवेश जलाया है
मतलब के खातिर मानव ने, रिश्तों को झुटलाया है
आधुकिकता की प्रीति उसको,प्रतिदिन ही बहलाती है
हे प्रभु इस धरती पर नर को,दानवता क्यों भाती है ।
देख अहिंसक को हिंसक बन,मानवता शरमाती है
हे प्रभु इस धरती पर नर को,दानवता क्यों भाती है ।
सुभाष सेमल्टी‘विपी’
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© All Rights Reserved
हे प्रभु इस धरती पर नर को,दानवता क्यों भाती है ।
मानव के कर्मों से प्रचंड,विनाश सर पर आया है
मानव ही मानव का दुश्मन,मति पर घमंड छाया है
दौलत को ही समझ कसौटी,मनुजता डगमगाती है
हे प्रभु इस धरती पर नर को,दानवता क्यों भाती है ।
दंभ के नशे में मानव ने, निज परिवेश जलाया है
मतलब के खातिर मानव ने, रिश्तों को झुटलाया है
आधुकिकता की प्रीति उसको,प्रतिदिन ही बहलाती है
हे प्रभु इस धरती पर नर को,दानवता क्यों भाती है ।
देख अहिंसक को हिंसक बन,मानवता शरमाती है
हे प्रभु इस धरती पर नर को,दानवता क्यों भाती है ।
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