...

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खुदगर्ज़
अंधेरे में खुद को देख पाना केसा होगा
जहाँ नहीँ है आसमाँ, जमीं केसे होगा
उड़ान भरे जो पँछी,
जहाँ थके वहीं, बसेहरा होगा

जो मिले दुआओं में, रूहानियत भी कहीँ
तरतीब-ए-खुदा, एक तो ज़माना होगा

में खुदगर्ज़ ही सही, अकेले आसमाँ मे
कुछ बस मेरा होगा, शिर्फ़...