...

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ना जाने
ना जाने तुम कहां गए?
मेरी आँखें तुमको ढूंढ रही।
भुला दी थी यादें जब
आवाज़ें क्यूं गूंज रही?

तुम आए थे मेरे पास
जैसे कोई सपना
अगर सपना ही मैं देख रही
चाहूं की अब जागूं ना।

आसमानो में देखू जब
सोचूं शायद तुम खुश हो।
पर शायद शायद करते ही
ना जाने कितनी रातें बीत गई।

झूठी मुस्काने देखी
पर आंसु झूठे देखे न
या शायद आंखों में तुम्हारी
आंसु झूठे थे ही ना।

उन झूठी बातों से ज्यादा
खोमोशिया अच्छी लगती है।
क्यूं न तुम खामोश रहे?
क्यूं न तुम मेरे पास रहे?
बस इन कुछ बातों की उलझन में
अब मेरी राते कटती हैं।

जो जाग के दुनिया देखी थी
वो खास पसंद नहीं आई है।
जो चीजें पसंद आई थी
इस दुनिया में ना पाई है।

© Amitra