सोच
क्या है ....सम्मान के लायक औरतों को सम्मान देने वालों की संख्या .... इज्ज़त छीनने वालों से ज्यादा समाज में।
क्या ...लड़ सकती है अच्छी सोच बुरी सोच से हिम्मत से।
क्या रह सकती हैं आदमियों की आंख की पुतलियां तटस्थ औरतों के चेहरे,आंखों को पढ़ने के लिए ...ये 'सोच ' कर कि क्यों निकली होगी घर से , घर चलाने,काम पे,या बच्चों की जरूरत पूरी करने को .... बिना उनके शरीर के तांके।
क्या कभी बिना चेहरा छिपाए चल पाएगी बेधड़क.... बिना धूप,धूल से छिपने का बहाना किए हुए।
क्या कभी कोई छोटी बच्ची या बेटा बच पाएगा हवस के बीमारों से।
क्या कभी बन पाएगा कानून ऐसा कोई जो लगाम लगा सके सोशल मीडिया पे पैसों,व्यूज,के लिए परोसे जा रहे जहर पर।
शायद नहीं कभी नहीं .... और आने वाली पीढ़ियां रोएंगी हमारी
'सोच ' पर।।
समीक्षा द्विवेदी
शब्दार्थ📝
क्या ...लड़ सकती है अच्छी सोच बुरी सोच से हिम्मत से।
क्या रह सकती हैं आदमियों की आंख की पुतलियां तटस्थ औरतों के चेहरे,आंखों को पढ़ने के लिए ...ये 'सोच ' कर कि क्यों निकली होगी घर से , घर चलाने,काम पे,या बच्चों की जरूरत पूरी करने को .... बिना उनके शरीर के तांके।
क्या कभी बिना चेहरा छिपाए चल पाएगी बेधड़क.... बिना धूप,धूल से छिपने का बहाना किए हुए।
क्या कभी कोई छोटी बच्ची या बेटा बच पाएगा हवस के बीमारों से।
क्या कभी बन पाएगा कानून ऐसा कोई जो लगाम लगा सके सोशल मीडिया पे पैसों,व्यूज,के लिए परोसे जा रहे जहर पर।
शायद नहीं कभी नहीं .... और आने वाली पीढ़ियां रोएंगी हमारी
'सोच ' पर।।
समीक्षा द्विवेदी
शब्दार्थ📝