...

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मैं निकल पड़ती हूँ
मैं हर बार
उन्हीं दोहराये रास्तों पर
निकल पड़ती हूँ,
भूली बिसरी वो गलियाँ
फिर याद आ जाती हैं।
मैं मन को मनाती हूँ
फिर किसी चौखट से,
वापस लौट आती हूँ
ठिठकती हूँ
मिचलाती हूँ
कहीं अंचल समेटती...