इश्क़ में लिखे ख़त
इश्क़ में लिखे ख़त थे कभी
और अब उस लिखावट को भी पहचानते नहीं
कभी पढ़े थे जो मुस्कुराते हुए
अब लब थोड़ा सा भी सकुचाते नहीं
आंखों की चमक जिन्हें पढ़ कर
खुद ब खुद बढ़ जाती...
और अब उस लिखावट को भी पहचानते नहीं
कभी पढ़े थे जो मुस्कुराते हुए
अब लब थोड़ा सा भी सकुचाते नहीं
आंखों की चमक जिन्हें पढ़ कर
खुद ब खुद बढ़ जाती...