...

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आजादी
आज़ादी महज़ एक लफ़्ज़ नही मुकम्मल एहसास है...
जो आज़ाद होकर भी कैद में है और बेहाल है....

छटपटा रही है इंसानियत के वो किस जंजाल में है....... ज़िंदगी फड़फड़ाती हुई उलझी एक अदृश्य जाल में है...

कोई कहां किसी को पूछता है के वो किस हाल में है.... आज़ादी ऐसा लगता है बस अमीरों के इस्तकबाल में है.

आज़ादी गरीबों की जानिब से लिए अनगिनत सवाल है .. मगर आजकल का निज़ाम तो खुद बेहद ही बदहाल है..

मार दिए ज़मीर और क़ैद करके के रख दी वो आज़ादी भी जिसकी वजह से इंसानियत पल पल मरती हुई बुरे हाल में है .. ...
इस्तकबाल - स्वागत
जानिब - दिशा
निजाम - व्यवस्था
© सोनी