...

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चाँद का साथ पाकर
ज़ख़्म मेरे अभी किसी-किसी को दिखाई दिए है,
शरारा हूँ आग का शोर कुछ-कुछ को सुनाई दिए है,

रहा हूँ बरस आँखों से कतरा-कतरा दहक,
रहा हूँ क़लमा काग़ज़ पर हर्फ़-हर्फ़ महक,

किसी गुल-ए-दर्द का मै जैसे कोई ईनाम हूँ,
रूह-ए-रवाँ का सख़्त-मीर मै कोई पैग़ाम हूँ,

मेरी मंज़िल का होश हूँ मै, मै ही उसकी कयास हूँ,
पुराने दरख़्त का दर्द हूँ मै, मै ही उसकी आवाज़ हूँ।

© Wordsmith Yogesh