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सरस्वती मां‌ ने भी ये सोचकर‌ रों दिया...,
#WorldPoetryDay
कविता तब तक अधूरी है जब तक किसी की जिन्दगी न बदल दे,आज विश्व कविता दिवस के अवसर पर मेरी एक प्रस्तुती बदलाव केलिए।

एक बार तो सरस्वती मां‌ ने भी ये सोचकर‌ रों दिया
क्या जुर्म किया था इन लडकियों ने जो पढने का हक खों दिया
सब झुठी करते मेरी पुजा मैने ये स्वीकार कर लिया
मेरी करते पुजा पर पढने और बढने का अधिकार लडकियों को ना दिया।


मै भी एक महिला ही हु
मेरी करते तुम पुजा
फिर‌ लडकियों‌ को‌ क्यों न अधिकार दिया
फिर‌ लडकियों‌ को‌ क्यों आगे न‌ बढने‌ दिया।


क्यां सबने हम देवीओं के साथ ढोंग है‌ किया
क्यां सबने सिर्फ अपने फायदे केलिए हमारा इस्तमाल किया
यदी नहीं तो क्यों लडकियों को न पढने‌ दिया
क्यों उन्हें आगे ना बढने‌ दिया,क्यों हम से खिलवाड़ किया।


अगर सबकी सच्ची आश्था रही हम पर
अगर सबकी सच्ची भक्ति रही हम पर
तो अभी लडकियों मे जलाओं ज्ञान का दीया
उनको भी पढने दो क्यों तुम्हे भी पढने का हक एक स्त्री ने है दिया।
© Premyogi
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