...

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चिंतन
मैंने पत्ते को झड़ते देखा शाख से,
आवाज़ बड़ी कर्कश सी थी,
पर हाँ अकेलेपन की कहानी थी उसमें,
कुछ मुझ जैसा ही जुड़ा हुआ टूटा हुआ,
सुकून भी हो रहा था महसूस थोड़ा,
मुझे मुझ जैसा कोई मिला तो सही,
बड़ा स्वार्थ भरा सुकून जो किसी के
गिरने से मिल रहा था,
बहुत ही खुदगर्ज हो जाता है इंसान
खुद के लिए,
वो बेजान लाश में भी उम्मीद ढूंढ लेता है,
क्या इतना ज़रूरी है साथ किसी का,
क्यों डराता है अकेलापन
क्यों कोई खुद से सामना नहीं कर पाता,
अंधेरे में खुद का साथ उजाला देता है,
पर हम भागते हैं इस रौशनी से,

कहीं न कहीं हममें भी खोट है,
© लहर✍🏻