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ज़िन्दगी के रंगमंच की कठपुतलियां
ज़िन्दगी के मंच पर , मोह मादक वंश पर
पुतलियां बने हुए , हम तो हैं घिरे हुए
मौत के प्रकाश से , यूं ही हम हताश से
क्यों हैं हम डरे हुए , लगते क्यों बिखरे हुए

ज़िन्दगी के मेले में हम , किरदार से बटे हुए
कोई दिखता दुखी यहां , कोई है सुखी यहां
किसी को कोई काम है , किसी का यहां नाम है
किसी को कोई दर नहीं , किसी को है कदर नहीं

ज़िन्दगी उलझी हुई , कहीं है सुलझी है
कहीं भोग विलास है , किसी को बस आस है
किरदारों के रूप सा , यहां अजब प्रयास है
कोई है बस खुश करे , कोई है जो दुख कहे

अपनों की पहचान सा , कोई कुछ न कुछ कहे
आया क्यों संसार में , न तू कहे न हम कहें
आया तो है काम कर , इक किरदार नाम कर
ये संसार कुछ कहे , तू तो ऐसा काम कर

किरदारों की भीड़ में , तू भी अपना नाम कर
तू यहां डटा रहे , यकीन से खड़ा रहे
मंच के उस अंत में , हर सोच में गड़ा रहे
फिर तू ही है सफल यहां , मिले ये अनुभव नया

ज़िन्दगी के मंच पर , हर तरफ है घर नया
देखकर देखा है मैंने , कुछ नया तो कुछ गया
न रहा मेरा यहां कुछ , न रहा तेरा यहां कुछ
जब हुआ सब कुछ हुआ , जब गया सब कुछ गया

© Akash Raghav