...

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मुसाफिर जिंदगी के
डूब रहे उलझनों की दरिया में
हमें बचा ले कोई
लूट रही सारी खुशियां मेरी
इस गम-ए-बाजार से
मुझे निकले कोई
इस बढ़ती उम्र के दौर में
छूट गया है कहीं बचपन मेरा
बहुत याद आ रही है उसकी
हो पता गर ठिकाना
तो मुझे उससे मिला दे कोई
डूब रहे उलझनों की दरिया में
हमें बचा ले कोई
निकल पड़े हैं इस तपती धूप में
जिंदगी के सुनसान रस्ते पर बिन छतरी के
काश के मां के आंचल सी‌
छाया मिला दे कोई
डूब रहे हैं उलझनों की दरिया में
हमें बचा ले कोई
हो रही ये कैसी बूंदा-बांदी बिन बादल के
हैं ये ख्वाईश के गले लगा के
मुझे चुप करा दे कोई
डूब रहे उलझनों की दरिया में
हमें बचा ले कोई
ना जाने कब जाएगा ये पतझड़ का मौसम
इन मुरझाये फूलों को भी
पानी पिला दे कोई
मंजिल मिली नहीं
अभी तो राहों में भटके हैं
है ख्वाहिश मेरी जिंदगी को
मुझसे मिला दे कोई
डूब रहे उलझनों की दरिया में
हमें बचा ले कोई

#alfaazdilke

© ~Pandey Akanksha~