जन्नत में मन्नत
पहाड़ों पर सैरगाह
घाटियों में सौंदर्य
झील इक जरिया
लोग घूमने आयें
कुछ कश्तियां चलें
तो परिवार चलायें
मेहमान घूमने आयें
बिक़ी हो कमायें
सर्दियों में बर्फबारियां
रोजगार भी बढायें
जन्नत जन्नत रहे
ना कब़िस्तान कहलाये
कुदरत जिसे बनाये
हम क्यूं मिटाये
इंसान इंसानियत रहे
यूंही अमन हो जाये
© mast.fakir chal akela