गंगा
गंगा
जहां जन्मी सभ्यताएं
पला बढ़ा इतिहास
सांसें ले रहा है वर्तमान
और गूंजेगा भविष्य
आदि अंत दोनों समाहित हैं
इसकी बहती धारा में
गंगा
ऊंचे पर्वतों के बीच
उच्श्रृंखल वेग से बहती
काटती जाती चट्टानों को
अपनी असीम शक्ति से
रास्ते में आने वाला
सब कुछ बहा ले जाती है
गंगा
उतरती है जब मैदानों में
काटती जाती खुद को ही
और गहरा करती जाती है
कभी तोड़ देती है तटबंध
कभी समा लेती खुद में
न जाने कितनी धाराएं
और अंत में मिल जाती है सागर से
गंगा
धुल देती है सारे पाप
बिना लोगों में कोई भेद किए
कभी रास्ते पार करा देती है
कभी भावसागर
सारी अपवित्रता खुद में समेट कर भी
बनी रहती है
उतनी ही पवित्र उतनी ही पावन
गंगा
उसका भी नाम था,
बहती रही अनवरत गंगा-सी
पालती रही ज़िंदगियां
समेटती रही दुनिया की अपवित्रता
गहरा काटती रही खुद को
लेकिन,
न कहला सकी पावन गंगा
न पा सकी स्वच्छंदता
न हटा सकी राह के पत्थर
न तोड़ पाई तटबंध
सीमित थी उसकी परिधि,
इस दुनिया में बहती रही
बनकर बरसाती नदी
फिर भी गंगा, मन से गंगा बनी रही...
गंगा-सी होने और,
गंगा हो जाने के बीच
का फासला,
उसने तो तय कर लिया था
पर ये समाज तय न कर सका ।
© आद्या
जहां जन्मी सभ्यताएं
पला बढ़ा इतिहास
सांसें ले रहा है वर्तमान
और गूंजेगा भविष्य
आदि अंत दोनों समाहित हैं
इसकी बहती धारा में
गंगा
ऊंचे पर्वतों के बीच
उच्श्रृंखल वेग से बहती
काटती जाती चट्टानों को
अपनी असीम शक्ति से
रास्ते में आने वाला
सब कुछ बहा ले जाती है
गंगा
उतरती है जब मैदानों में
काटती जाती खुद को ही
और गहरा करती जाती है
कभी तोड़ देती है तटबंध
कभी समा लेती खुद में
न जाने कितनी धाराएं
और अंत में मिल जाती है सागर से
गंगा
धुल देती है सारे पाप
बिना लोगों में कोई भेद किए
कभी रास्ते पार करा देती है
कभी भावसागर
सारी अपवित्रता खुद में समेट कर भी
बनी रहती है
उतनी ही पवित्र उतनी ही पावन
गंगा
उसका भी नाम था,
बहती रही अनवरत गंगा-सी
पालती रही ज़िंदगियां
समेटती रही दुनिया की अपवित्रता
गहरा काटती रही खुद को
लेकिन,
न कहला सकी पावन गंगा
न पा सकी स्वच्छंदता
न हटा सकी राह के पत्थर
न तोड़ पाई तटबंध
सीमित थी उसकी परिधि,
इस दुनिया में बहती रही
बनकर बरसाती नदी
फिर भी गंगा, मन से गंगा बनी रही...
गंगा-सी होने और,
गंगा हो जाने के बीच
का फासला,
उसने तो तय कर लिया था
पर ये समाज तय न कर सका ।
© आद्या