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ज़िंदगी को कुछ यूं....…...
ज़िन्दगी को कुछ यूं जिए जा रहे हैं
की चढ़ने के बाद भी पिए जा रहे हैं

देना था जिनको खुशियों के तोहफे
उन्हें भी
गम बेहिसाब दिए जा रहे है

लेना तो कुछ था ही नहीं जब
क्यों लोगों के आंसू लिए जा रहे है

जाना है सबकुछ यही छोड़कर
फिर क्यूं ये जतन हम किए जा रहे है

हर कोई देता ज़ख़्म बस हमें
हम गैरों के ज़ख़्म सिए जा रहे है

उम्र कट ही जाती है गम हो या खुशियां
तो फिर क्यों जनाजे लिए जा रहे है

ज़िन्दगी को क्यों यूं जिए जा रहे है
मरना भी है और जिए जा रहे है

जिए जा रहे बस जिए जा रहे हैं...
© kajal