...

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पलकों पर शीशे चमकाने लगे हैं
पलकों पर शीशे चमकाने लगे हैं
लोग दिलों में बात दबाने लगे हैं

अपनों का साथ यूं भारी हो गया
आहन की दीवार बनाने लगे हैं

पेशानी की लकीरें गहरी हो गई
अपने घरों में आग लगाने लगे हैं

भूल के लिहाज़ बड़े बूढ़ों का
जाम पर जाम छलकाने लगे हैं

बदन की करवट,रात की सिलवट
आसमां में मोतियों के दाने लगे हैं

दुआ कुबूल बारिश की जो हुई
लोग नींदों से उठ के जाने लगे हैं

आईने में दिखा उम्र का नजराना
क्यों नज़र चुराकर जाने लगे हैं
© manish (मंज़र)