...

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मेरा अकस
एक छोटी सी आस में,
जाने किसकी तलाश में,
ये जिंदगी बसर कर रहे हैं!
जाने क्या चाहता हूँ,क्यों चाहता हूँ!सोचता हूँ, यूँ ही खो जाता हूँ ।

अपना सा लगता है कोई,न बताता हूँ।
मानो जैसे सपना हो कोई!दिवार के सहारे,चुपके से देखकर उसे,शरमा सा जाता हूँ,कुछ देर सोचता हूँ, फिर दिल को समझाता हूँ, क्या है तेरा मुझसे नाता सोच कर थोड़ा !मैं ठहर सा जाता हूँ, तुम मेरे साथ हो न जाने कब से!कैसा रिश्ता है हमारा मानो जन्म जन्मों से, ये सोचता हूँ! मैं कहीं रूक सा जाता हूँ!अब नहीं हूँ मैं वो जो मैं हो जाता हूँ।

मिलता है अकस फिर मुझसे मेरा,मैं छुपता हूँ, छुपाता हूँ, जानना चाहता हूँ कौन हो तुम! अपने आप से अक्सर पूछता हूँ!क्यों मैं वो नहीं होता,जो मैं होना चाहता हूँ। परेशान तो हूँ थोड़ा ये मैं कहाँ आ जाता हूँ, कोई भी तो नहीं है यहाँ ,अकेले सा रह जाता हूँ।

एक छोटी सी आस में,
जाने किसकी तलाश में,
ये जिंदगी बसर कर रहे हैं!
जाने क्या चाहता हूँ,क्यों चाहता हूँ!सोचता हूँ, यूँ ही खो जाता हूँ ।

© himanshu verma