मेरे ज़हन में अकसर ही.....!!
मेरे ज़हन में अक्सर ही
कुछ शब्दों के जाल बिखरे रहते हैं..!
वो कुछ शब्द है जो,
मुझे अक्सर ही परेशान करते हैं.
प्रेम,करुणा,त्याग,सामंजस्य,मौलिकता, ईमानदारी, नैतिकता और ना जानें इन्हीं की तरह कितने शब्द है जो मन की डायरी में बिखरे पड़े हैं.
जानो ये अपने वज़ूद के लिए लड़ रहे हैं,
मानो इन शब्दों की अहमियत,
आपकी-मेरी कविताओं तक ही
सीमित हो चली है.
असल जीवन में इनके विपरीत भावों छल, स्वार्थ,प्रतिद्वंदता, घृणा,भ्रष्ट आचरण...
कुछ शब्दों के जाल बिखरे रहते हैं..!
वो कुछ शब्द है जो,
मुझे अक्सर ही परेशान करते हैं.
प्रेम,करुणा,त्याग,सामंजस्य,मौलिकता, ईमानदारी, नैतिकता और ना जानें इन्हीं की तरह कितने शब्द है जो मन की डायरी में बिखरे पड़े हैं.
जानो ये अपने वज़ूद के लिए लड़ रहे हैं,
मानो इन शब्दों की अहमियत,
आपकी-मेरी कविताओं तक ही
सीमित हो चली है.
असल जीवन में इनके विपरीत भावों छल, स्वार्थ,प्रतिद्वंदता, घृणा,भ्रष्ट आचरण...