क्या तुम फिर साथ आओगी की.......
क्या तुम फिर साथ आओगी क्या,
इस पग पर कदमों से कदम बढ़ाओगी क्या…..
क्या तुम फिर साथ आओगी क्या……
फूल सी चमक बिखर कर,
कांटों को जीवन से हटाओगी क्या……
क्या तुम फिर साथ आओगी क्या……
दिल के पुराने जख्मों पर,
मलहम यूं लगाओगी क्या….
क्या तुम फिर साथ आओगी क्या……
बारिशों की बूंदे बनकर,
जीवन को बाग बनाओगी क्या…..
क्या तुम फिर साथ आओगी क्या……
प्रेम के इस पौधे को,
वटवृक्ष तुम बनाओगी क्या…..
क्या तुम फिर साथ आओगी क्या……
इस खामोशी भरी रात में,
लोरी जैसे गुनगुनाओगी क्या…..
क्या तुम फिर साथ आओगी क्या……
क्या फिर एक बार साथ आकर
जीवन को सवार दोगी क्या….
क्या तुम फिर साथ आओगी क्या……
अधूरे उस वादे को,
फिर से निभाओगी क्या…..
क्या तुम फिर साथ आओगी क्या……
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