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"बचपन"
ऐ बचपन बिताए हुए तेरे संग हर लम्हें खुशनुमा से लगते हैं।
शायद इसीलिए उन्हें याद कर कभी हम हंसते तो कभी रो देते हैं।
ऐ बचपन क्या सुनाऊं तुम्हें अब हाल-ए-जिन्दगी;
बस इतना ही कहूंगी कि तुम्हारे जाने के बाद से बेहाल हो गयी है जिन्दगी।
यह तूफान एक्सप्रेस की तरह यूं दौड़ रही है जिन्दगी
कि रूक कर खुद से खुद का हाल भी नहीं पूछ रही है जिन्दगी।
ऐ बचपन न तू रहा न बचपन के दोस्त रहे;
अब ख्वाबों के मीनार ही दोस्त हैं बन रहे।
ऐ बचपन जब तू था तब न तो हिदायत दी किसी ने धीमें हसंने की;
और न हीं हमें रोने के लिए जरूरत पडी किसी कोने की।
ऐ बचपन जब तू था तब हम खिलौनों से खेला करते थे;
अब जब तू नहीं हैं तो लोग हमारी भावनाओं से खेला करते हैं।
ऐ बचपन तुझे याद कर मेरी लेखनी भी भावविभोर हो रही हैं;
शायद इसीलिए अब यह कुछ भी न कहने की जिद्द कर रही है।
पारूल दुबे की लेखनी से ✍️
© PARUL DUBEY✍️
शायद इसीलिए उन्हें याद कर कभी हम हंसते तो कभी रो देते हैं।
ऐ बचपन क्या सुनाऊं तुम्हें अब हाल-ए-जिन्दगी;
बस इतना ही कहूंगी कि तुम्हारे जाने के बाद से बेहाल हो गयी है जिन्दगी।
यह तूफान एक्सप्रेस की तरह यूं दौड़ रही है जिन्दगी
कि रूक कर खुद से खुद का हाल भी नहीं पूछ रही है जिन्दगी।
ऐ बचपन न तू रहा न बचपन के दोस्त रहे;
अब ख्वाबों के मीनार ही दोस्त हैं बन रहे।
ऐ बचपन जब तू था तब न तो हिदायत दी किसी ने धीमें हसंने की;
और न हीं हमें रोने के लिए जरूरत पडी किसी कोने की।
ऐ बचपन जब तू था तब हम खिलौनों से खेला करते थे;
अब जब तू नहीं हैं तो लोग हमारी भावनाओं से खेला करते हैं।
ऐ बचपन तुझे याद कर मेरी लेखनी भी भावविभोर हो रही हैं;
शायद इसीलिए अब यह कुछ भी न कहने की जिद्द कर रही है।
पारूल दुबे की लेखनी से ✍️
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