...

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पिया-प्यासी।
सजी हुई लटें उलझाने
अब तो पिया तुम आ जाओ
मन में अग्न तुम्हारी है
तन को भी समझा जाओ।

सही ना जाये दूरी तुमसे
कुछ ऐसे दूरी मिटा जाओ
सांसें-सांसों में समा जायें
वो मीठी नींद सुला जाओ।

मेरे यौवन के मकरंद पे
तुम मधुप बनकर छा जाओ
सब रस निचोड़ कर ले जाओ
वो अदभुत राग-रंग दे जाओ।

मेरी अनछुई अंगड़ाई में
वो कनक चटक जगा जाओ
कसलो अपनी बांहों में बालम
मेरा अंग-अंग चटका जाओ।

तन पर सजता नहीं कोई रंग
तुम अपना रंग चढ़ा जाओ
खिल जाए रोम-रोम मेरा
कुछ ऐसा रंग जमा जाओ।

काजल, बिंदिया,लाली को
कभी तो आके सता जाओ
चूड़ी, कंगना,कमरबंद को
जी भर के तुम बजा जाओ।

कामुक,कामिनी दासी की
अमिट प्यास बुझा जाओ
पिया बसंत तुम आ जाओ
कली को फूल बना जाओ।

अब तो पिया.......
अब तो,
तुम आ जाओ।



दिनेश चौधरी 'फ़नकार'