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"""आड़ू""""




मेरे  मामा के बगीचे में लगे बहुत से पेड़,
आड़ू नासपाती,खुमानी, पुलम और बेर।
कोई नासपाती को ललचाये ,
तो  कोई बेर ,पुलम को चाहे।।

मुझसे जब मामाजी पूछें,
तुम बोलो क्या चाहते हो?
मैं  और सब-कुछ मना कर दूँ,
माँगू सिर्फ आड़ू और  कभी बेर।।

बोले मामू इन आड़ू में ,ऐसा क्या है,बतलाओ,
जो तुम सब-छोड़कर बस इनको ही खाते हो ।।

मीठे -मीठे  रस से भरे ,
बस एक दो  निवाले में खत्म।
लाल-हरे , यह मेरे मन को भाये।
इसीलिए मेरा दिल  इनके लिए ललचाये।।

सुबह- शाम बगीचे में जाऊँ,
और   आड़ू  जी भरकर खाऊँ।
मामा बोले , सब तुम्हारा ही है,
लेकिन आड़ू सम्भलकर खाओ।

पेड़ अपना फल  खुद नहीं खाता,
वह तो औरों को खिलवाता।
जैसे सूरज की धूप , नदी का पानी,
पेड़ की हवा सब हमें ही  मिलता है।।

इनमें नहीं है ,कोई लालच,
तो हम क्यों करें कोई  लालच।।
करो ,चीज़ो का उतना ही उपभोग,
जिससे हम रहें नीरोग ,ना लगे कोई हमको  रोग।।

मैने मामू से  आज है जाना,
फल तो बहुत है खाना।
साथ में उनके पेड़ भी लगाना।।
जिससे फल नहीं होंगे खत्म,
हम हमेशा लेते रहेंगे उनका आनन्द।।

(Always thankful to the nature for their blessings.
Teach your kids to not destroy the trees and make a habit of plantation.)🙏🙏🙏


© Rishav Bhatt