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बारिश और बचपन
#स्मृति_कविता
वो बारिश का बरसना और
घर से छुप कर निकलना
टोली से मिलकर पानी में उछलना
छाता जो लेकर आते उनको भिगोना
कागज़ कि नाव बना कर तैरना
अपनी अपनी नाव को आगे बढ़ाना
भीग जाने पर उनको डुबोना
गड्ढे में भरे पानी में नहाने को उतरना
घर कि छत के नाले को बंद करना
भरकर पानी उसे तरणताल समझना
इस कोने से उस कोने तक फिसलते रहना
माँ कि डांट सुन कर छत से उतरना
बदल कर कपडे खटिया पर बैठना
हलवे संग गरम गरम पकोड़ियों को खाना
अब ना वैसी बारिश है ना वो मित्रों कि टोली है
ना वो प्यार करने वाली माँ कि वो मीठी बोली है